9 अगस्त 2025 को रक्षाबंधन का त्योहार पूरे देश में उल्लास और उमंग के साथ मनाया जाएगा। यह दिन न केवल भाई-बहन के प्रेम और रिश्ते का प्रतीक है, बल्कि आज के दौर में यह त्योहार एक बड़ा आर्थिक अवसर भी बन चुका है। राखी का एक छोटा-सा धागा अब करोड़ों के कारोबार और लाखों लोगों की आजीविका का माध्यम बन गया है। आज रक्षाबंधन एक पारिवारिक त्योहार से आगे बढ़कर लोकल उद्योग, महिला उद्यमिता और डिजिटल भारत की कहानी बन चुका है।
राखी: भावनाओं और व्यापार का संगम
राखी कभी एक साधारण सूती धागा हुआ करती थी, लेकिन आज यह एक बहु-आयामी बाजार बन चुकी है। पारंपरिक राखियों के साथ-साथ अब गोल्ड और सिल्वर प्लेटेड राखियां, फोटो राखियां, कस्टमाइज डिज़ाइनर राखियां और कार्टून राखियां भी बाजार में मौजूद हैं। इनकी कीमत ₹10 से ₹5000 तक हो सकती है, जिससे हर वर्ग के ग्राहक को विकल्प मिलता है।
देशभर के छोटे कारोबारी, खासकर महिलाएं, इस सीज़न में राखी बनाने और बेचने से अच्छी-खासी कमाई कर रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, हर साल लाखों राखियां सिर्फ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से तैयार होकर देश और विदेश में भेजी जाती हैं।
डिजिटल युग में राखी का बदला अंदाज़
कोरोना काल के बाद से ऑनलाइन राखी भेजना एक नया ट्रेंड बन गया है। भाई-बहन अब दुनिया के किसी भी कोने में रहकर एक-दूसरे को डिजिटल गिफ्ट्स, ई-राखी और पर्सनलाइज राखी हैम्पर्स भेज सकते हैं। Ferns N Petals, IGP, Archies, Amazon और Flipkart जैसी वेबसाइट्स इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही हैं। इन प्लेटफॉर्म्स पर राखियों के साथ मिठाइयां, चॉकलेट्स, गिफ्ट आइटम्स और थाली डेकोरेशन भी मिल जाते हैं। इससे ग्राहक को ‘एक ही जगह सबकुछ’ वाली सुविधा मिलती है और कारीगरों को वैश्विक बाजार तक पहुंच।
वोकल फॉर लोकल: देशी राखियों की वापसी
कुछ साल पहले चाइनीज़ राखियों की चमक-दमक ने भारतीय बाजार पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन अब देश में ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों ने देशी कारीगरों को फिर से मजबूती दी है। अब लोग स्थानीय कारीगरों की राखियों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं। राजस्थान की मीनाकारी राखियां, बनारसी ज़री राखियां, और गोंड आर्ट आधारित राखियों को लोग खूब पसंद कर रहे हैं। इससे भारत की पारंपरिक कलाओं को नया जीवन मिला है।
महिला उद्यमिता और रक्षाबंधन
इस त्योहार ने महिलाओं के लिए घर बैठे कारोबार शुरू करने का एक सुनहरा मौका दिया है। उत्तर प्रदेश की प्रियंका जैसी महिलाएं हैंडमेड राखियां बनाकर सोशल मीडिया पर बेच रही हैं। उनके साथ 25 और महिलाएं जुड़ चुकी हैं जो उनके इस छोटे-से स्टार्टअप का हिस्सा हैं। प्रियंका का उदाहरण यह दिखाता है कि साधारण संसाधनों और सही सोच के साथ रक्षाबंधन एक आत्मनिर्भरता की कहानी भी बन सकता है।
राखी से जुड़ी इंडस्ट्रीज़
रक्षाबंधन सिर्फ राखी बेचने तक सीमित नहीं है। इस पर्व से कई अन्य बिजनेस भी जुड़े हुए हैं, जैसे:
गिफ्टिंग इंडस्ट्री: पर्सनलाइज मग, टी-शर्ट, फोटो फ्रेम, ग्रीटिंग कार्ड्स
फूड इंडस्ट्री: मिठाइयां, चॉकलेट गिफ्ट बॉक्स, ड्राय फ्रूट हैम्पर्स
डेकोरेशन: राखी थाल, फूल सजावट, डेकोरेटिव पैकिंग
यह सारे बिजनेस इस समय अपनी साल की सबसे ज्यादा बिक्री करते हैं।
विदेशी बाज़ार में उड़ान
भारत से बाहर बसे NRI समुदाय के लिए भी राखी एक बेहद भावनात्मक पर्व है। भारतीय ई-कॉमर्स कंपनियां अब अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके जैसे देशों में भी राखियां भेज रही हैं। इससे न सिर्फ भारत की संस्कृति का प्रचार हो रहा है बल्कि देश को विदेशी मुद्रा भी प्राप्त हो रही है।
आर्थिक आंकड़े और ग्रोथ
रक्षाबंधन से जुड़ा भारत का बाजार 2023 में लगभग ₹10 हजार करोड़ तक पहुंच चुका था। इसमें से 40 फीसदी हिस्सा सिर्फ राखी और उससे जुड़े सामान का है। शेष गिफ्टिंग, मिठाइयां, लॉजिस्टिक्स और डेकोरेशन से आता है। विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 तक यह बाजार सालाना 12 प्रतिशत की दर से और बढ़ेगा।
ब्रांडिंग और मार्केटिंग का मौका
बड़े ब्रांड्स जैसे Titan, Amul, Zomato और Tanishq अब रक्षाबंधन पर स्पेशल एडिशन प्रोडक्ट्स और विज्ञापन अभियान लॉन्च करते हैं। छोटे ब्रांड्स और स्टार्टअप्स भी इंस्टाग्राम रील्स, लोकल इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग और डिस्काउंट ऑफर के ज़रिए खुद को प्रमोट करते हैं।
राखी सिर्फ त्योहार नहीं, एक अवसर
9 अगस्त को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते का पर्व नहीं, बल्कि आज के समय में यह एक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर बन गया है। यह त्योहार छोटे कारोबारियों, महिलाओं, कारीगरों और डिजिटल उद्यमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। हर राखी में अब सिर्फ प्रेम नहीं, बल्कि संभावनाओं का संसार भी छुपा है – जो भारत को आत्मनिर्भर और समृद्ध बनने की दिशा में अग्रसर करता है।