“जो बोतल आप फेंक देते हैं, वो किसी के लिए बिज़नेस बन जाती है…” हर दिन भारत में लाखों प्लास्टिक की बोतलें और कैप नालियों में बह जाते हैं। अक्सर इन्हें हम ‘कचरा’ मानकर नजरअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यही बेकार प्लास्टिक किसी की कमाई का साधन बन सकता है? यूपी के दो युवाओं ने मिलकर ऐसा ही कर दिखाया है – प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकल कर एक ऐसी यूनिट तैयार की गई है, जो रोजाना 150–200 किलो तक Polypropylene (PP) Flament तैयार कर रही है। यह फ्लामेंट अब ब्रश, मॉप, 3D प्रिंटिंग और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में इस्तेमाल हो रहा है।
आइडिया जो नाली के किनारे से निकला…
इस यूनिट के सह-संस्थापक अजेन्द्र चौहान बताते हैं कि एक दिन उन्होंने कुछ बच्चों को नाली में प्लास्टिक की बोतलें फेंकते देखा। वहीं से उन्हें ख्याल आया कि अगर इस वेस्ट को प्रोसेस किया जाए, तो एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट बनाई जा सकती है। “मैंने इंटरनेट पर रिसर्च किया, वीडियो देखे, मशीनों के दाम पता किए।
₹700 की पहली बिक्री से शुरू किया था… आज लाखों में कारोबार है” – अजेन्द्र चौहान, संस्थापक।
देश की इकोनॉमी में योगदान भी दे रहे हैं…
दूसरे साझेदार भरत भाई बताते हैं कि शुरू में उन्हें भी संदेह था, लेकिन आज उनकी यूनिट कई मज़दूरों को रोज़गार भी दे रही है। “हम कचरे को संसाधन में बदल रहे हैं। जो बोतलें पहले जलाकर खत्म की जाती थीं, वो अब री-यूज़ होकर देश की ग्रोथ स्टोरी का हिस्सा बन रही हैं” – भरत भाई, निदेशक।
कैसे बनता है ‘PP Flament’?
- कलेक्शन – बाजार और कबाड़ी से वेस्ट प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं
- सेग्रीगेशन – सिर्फ PP प्लास्टिक को छांटा जाता है
- श्रेडिंग – मशीन से छोटे टुकड़ों में काटा जाता है
- वॉशिंग और ड्राइंग – गंदगी हटाने के बाद सुखाया जाता है
- मोल्टिंग और एक्सट्रूज़न – हाई टेम्प्रेचर में पिघलाकर पतला धागा निकाला जाता है
- रीलिंग और पैकेजिंग – धागे को रील में लपेटकर सप्लाई किया जाता है।
कितनी लागत? कितना मुनाफा?
खर्च/आय का प्रकार | अनुमानित लागत / आय |
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मशीनरी (कटर, ड्रायर, एक्सट्रूडर) | ₹3 – ₹4 लाख (एक बार का निवेश) |
स्पेस किराया | ₹10,000 – ₹20,000 /माह |
मज़दूरी + बिजली + मेंटेनेंस | ₹20,000 – ₹30,000 /माह |
वेस्ट प्लास्टिक की खरीद | ₹10 – ₹15 / किलो |
बिक्री मूल्य | ₹120 – ₹180 / किलो |
डेली प्रोडक्शन | 150 – 200 किलो / दिन |
अनुमानित मासिक रेवेन्यू | ₹1.5 – ₹3 लाख / माह |
यानी 6–7 लाख के निवेश पर, एक साल में ब्रेक ईवन संभव है।
सर्कुलर इकोनॉमी की मिसाल
जहां सरकार ‘स्वच्छ भारत’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ की बात करती है, वहीं ज़मीन पर इस तरह की यूनिट्स उस सोच को साकार कर रही हैं। यह न सिर्फ कचरा प्रबंधन का समाधान है, बल्कि ग्रामीण और शहरी युवाओं के लिए एक सशक्त उद्यम का अवसर भी।