उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। पावर कॉरपोरेशन की ओर से घरेलू उपभोक्ताओं के लिए नई बिजली दरों में जबरदस्त बढ़ोतरी का प्रस्ताव पेश किया गया है। जिस पर अब राज्य विद्युत नियामक आयोग ने जवाब-तलब कर लिया है। कॉरपोरेशन के इस प्रस्ताव के अनुसार शहरी इलाकों में बिजली दरें 6.50 रुपये से बढ़ाकर 9 रुपये प्रति यूनिट तक की जा सकती हैं। लेकिन जब इसमें फिक्स चार्ज और अन्य शुल्क जोड़े जाएंगे तो प्रभावी दरें 9 से 13 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच जाएंगी।
नए प्रस्ताव में एक और बड़ा बदलाव किया गया है – बिजली की स्लैब प्रणाली में फेरबदल। पहले जहां उपभोक्ताओं के लिए 101-150 यूनिट, 151-300 यूनिट और 300 से अधिक यूनिट के अलग-अलग स्लैब थे। अब इन्हें मिलाकर केवल दो स्लैब कर दिए गए हैं – 101-300 यूनिट और 300 से अधिक यूनिट। इससे मध्यम वर्गीय उपभोक्ताओं पर सीधा असर पड़ेगा, जिन्हें अब ज्यादा यूनिट की दर पर भुगतान करना होगा।
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इस मामले को नियामक आयोग के सामने उठाया। इसके बाद आयोग ने पावर कॉरपोरेशन से पूछा है कि दरों में इतनी बढ़ोतरी की आखिर जरूरत क्यों पड़ी? साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि हर कैटेगरी के राजस्व का पूरा ब्योरा दिया जाए ताकि जनता के सामने तस्वीर साफ हो सके।
अगर हम मौजूदा और प्रस्तावित दरों की तुलना करें तो फर्क साफ दिखता है। उदाहरण के लिए, 2KW लोड पर 200 यूनिट की खपत करने वाले उपभोक्ता का बिल वर्तमान में लगभग 1345 रुपये आता है, जबकि नई दरों के अनुसार ये 1830 रुपये तक पहुंच सकता है। इसी तरह 5KW लोड पर 500 यूनिट की खपत का बिल 3575 से बढ़कर सीधा 5000 रुपये तक पहुंचने की संभावना है।
इस प्रस्ताव ने प्रदेश में हलचल मचा दी है। एक तरफ उपभोक्ता बढ़ती दरों से परेशान हैं, वहीं दूसरी तरफ बिजली विभाग के कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। प्राइवेटाइजेशन और महंगी बिजली के इस दोहरे संकट से आम जनता पर दोहरी मार पड़ती दिख रही है। अब देखना ये होगा कि आयोग इस प्रस्ताव को पास करता है या जनभावनाओं को देखते हुए बिजली दरों में राहत देता है। लेकिन एक बात तय है, यूपी की बिजली राजनीति इस समय सबसे गर्म मुद्दा बन चुकी है।