देश में इंश्योरेंस सिस्टम को लेकर एक नया और खतरनाक फ्रॉड सामने आ रहा है। ये धोखेबाज अब बीमा कंपनियों को ठगने के लिए आधार कार्ड का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले ये लोग पिन कोड की हेराफेरी से फ्रॉड करते थे, लेकिन अब तकनीक का गलत फायदा उठाकर ये लोग आधार डिटेल्स के जरिए झूठे क्लेम कर रहे हैं और लाखों की रकम निकाल रहे हैं।
पॉलिसी लेने से लेकर क्लेम तक फर्जीवाड़ा
इन जालसाजों का तरीका बेहद शातिर है। वे पहले जाली या एडिट किए गए आधार कार्ड बनाते हैं। इसके जरिए ये लोग नकली पहचान के साथ हेल्थ, लाइफ और मोटर इंश्योरेंस की पॉलिसी खरीदते हैं। फिर कुछ समय बाद अस्पतालों और एजेंटों की मिलीभगत से झूठे क्लेम दर्ज करवा दिए जाते हैं। इनमें कई बार मृत व्यक्ति के नाम पर पॉलिसी लेकर भी फर्जी क्लेम किया जाता है।
बीमा सेक्टर में 10 से 15% तक क्लेम फ्रॉड
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के इंश्योरेंस सेक्टर में होने वाला कुल फ्रॉड 10 से 15 फीसदी तक पहुंच चुका है। यानी हर 100 क्लेम में से 10 से 15 केस फ्रॉड के हो सकते हैं। इसे रोकने के लिए इंश्योरेंस कंपनियां अब इंश्योरेंस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (IIB) के साथ मिलकर डेटा शेयर कर रही हैं ताकि संदिग्ध मामलों को पहले ही पकड़ा जा सके।
पुलिस भी आई ऐक्शन में
यूपी पुलिस ने जुलाई के अंत तक कई बीमा कंपनियों को नोटिस जारी किए हैं। इन कंपनियों से क्लेम विभाग के अधिकारियों और दूसरे कर्मचारियों की डिटेल्स मांगी गई हैं। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि शुरुआती जांच में सामने आया है कि कुछ मामलों में बीमा कंपनी के अंदर के लोग भी इस फ्रॉड में शामिल हो सकते हैं।
आधार बना फ्रॉड की नई कड़ी
संभल की एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा ने बताया कि अब आधार कार्ड फ्रॉड की चेन में सबसे कमजोर कड़ी बन गया है। धोखेबाज या तो नकली आधार बनाते हैं या उसमें हेरफेर करते हैं और फिर उसी फर्जी पहचान से बीमा पॉलिसी लेते हैं। यह गिरोह बहुत संगठित तरीके से काम करता है और हर फ्रॉड में कई लोग शामिल होते हैं।
कमजोर वर्ग को बनाया जा रहा शिकार
इन गिरोहों की सबसे शर्मनाक बात ये है कि ये लोग गांवों, अस्पतालों और गरीब परिवारों को अपना टारगेट बनाते हैं। जो लोग किसी हाल में बीमार हैं, जिनके परिवार में किसी की मौत हो गई है या जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं – ऐसे लोगों को पैसे का लालच देकर उनके आधार डिटेल्स लिए जाते हैं। फिर उन पर बीमा पॉलिसी ली जाती है और झूठे दस्तावेजों से पैसा निकाला जाता है।
पता कैसे चलता है फ्रॉड का?
बीमा कंपनियों ने ऐसे कई मामले रिपोर्ट किए हैं, जिनमें पॉलिसी लेने वाले का आधार कार्ड तो ठीक है, लेकिन उसमें जुड़ा फोन नंबर या ईमेल किसी और का होता है। जब तक क्लेम फाइल नहीं होता, ये फ्रॉड पकड़ में नहीं आता। यही कारण है कि कंपनियों को फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन टीमें बनानी पड़ी हैं जो हर संदिग्ध मामले को गंभीरता से जांच रही हैं।
सिस्टम को सुरक्षित बनाना जरूरी
इस तरह के मामलों से साफ है कि आधार जैसी पहचान प्रणाली को और मजबूत बनाने की जरूरत है। सिर्फ बीमा कंपनियों की सतर्कता से बात नहीं बनेगी। सरकार को भी चाहिए कि वो ऐसे धोखेबाजों पर सख्त कार्रवाई करे और आधार की सुरक्षा व्यवस्था को और पुख्ता बनाए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक ये अपराधी नए-नए तरीके से सिस्टम को चकमा देते रहेंगे।
सतर्क रहें, सही जानकारी जांचें
अगर आप कोई इंश्योरेंस पॉलिसी लेने जा रहे हैं, तो खुद भी सतर्क रहें। हर दस्तावेज की डिटेल्स को अच्छे से जांचें, अपने मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी सही दर्ज करें और अनजान एजेंटों से दूरी बनाकर रखें। बीमा सुरक्षा के लिए है, लेकिन गलत हाथों में ये हथियार बन सकता है।