अमेरिका ने भारतीय आईटी कंपनियों के लिए बड़ा फैसला लिया है। H-1B वीजा की फीस में जबरदस्त बढ़ोतरी की गई है, जो अब तक 1,500 से 4,000 डॉलर थी, अब इसे बढ़ाकर लगभग 100,000 डॉलर (87 लाख रुपये) कर दिया गया है। यह बढ़ोतरी केवल नए वीजा के लिए लागू होगी। पहले से वीजा प्राप्त कर्मचारी या रिन्यूअल के अधीन लोग फिलहाल इससे प्रभावित नहीं होंगे। यह बदलाव भारतीय आईटी सेक्टर के लिए एक झटका भी है और अवसर भी, क्योंकि यह कंपनियों को अपने बिज़नेस मॉडल और ग्लोबल स्ट्रैटेजी पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेगा।
H-1B वीजा क्यों है अहम
भारत का आईटी सेक्टर लंबे समय से अमेरिका पर निर्भर रहा है। बड़ी कंपनियां जैसे TCS, Infosys, Wipro और HCL इस वीजा के जरिए हजारों भारतीय इंजीनियरों को अमेरिका भेजती रही हैं। ये कर्मचारी अमेरिकी कंपनियों के क्लाइंट प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं। अकेले अमेरिका भारत के आईटी निर्यात का लगभग 55–60 प्रतिशत हिस्सा कवर करता है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का आईटी और सॉफ्टवेयर निर्यात 181 अरब डॉलर था, जिसमें नेट एक्सपोर्ट लगभग 160 अरब डॉलर रहा। इस बढ़ोतरी की उम्मीद थी कि 2025-26 में 5 प्रतिशत और बढ़ेगी। लेकिन H-1B वीजा फीस में यह बड़ा उछाल अब इस अनुमान पर सवाल खड़ा कर रहा है।
नई फीस का असर: सीमित या व्यापक?
एमके रिसर्च की चीफ इकॉनमिस्ट माधवी अरोड़ा मानती हैं कि निकट भविष्य में इसका असर पूरी तरह से दिखाई नहीं देगा। कारण यह है कि बड़ी कंपनियां पहले से ही अमेरिका में लोकल हायरिंग बढ़ा चुकी हैं। अब उनकी वर्कफोर्स में 50–70 प्रतिशत अमेरिकी नागरिक शामिल हैं। इसके अलावा, अमेरिकी डिलीवरी सेंटर, ऑटोमेशन और सब-कॉन्ट्रैक्टिंग जैसे मॉडल अपनाए जाने से H-1B वीजा पर निर्भरता घट रही है। इसलिए बड़े आईटी खिलाड़ी इस बदलाव को झेलने में सक्षम हैं।
छोटे और मझोले IT कारोबारों की मुश्किलें
लेकिन छोटी और मझोली कंपनियों के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है। ये कंपनियां अब भी बॉडीशॉपिंग मॉडल पर निर्भर करती हैं। इस मॉडल में भारतीय इंजीनियरों को H-1B वीजा पर अमेरिका भेजा जाता है और क्लाइंट से सीधे बिलिंग की जाती है। अब जब वीजा की लागत इतनी बढ़ गई है, तो इन कंपनियों के पास दो ही विकल्प बचते हैं पहला अमेरिकी नागरिकों को हायर करना, जो पांच गुना महंगे पड़ते हैं और दूसरा प्रोजेक्ट्स छोड़ देना। इसका असर उनकी आमदनी और अस्तित्व पर गंभीर रूप से पड़ सकता है।
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCC) मॉडल: एक अवसर
इस संकट ने कंपनियों को ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCC) पर ध्यान देने के लिए मजबूर कर दिया है। भारत में वर्तमान में 1,800 से ज्यादा GCC मौजूद हैं, जो लगभग 65 अरब डॉलर का निर्यात कर रहे हैं। इस मॉडल में विदेशी कंपनियां खुद भारत में अपने सेंटर खोलती हैं और यहीं से काम करवाती हैं। इससे ऑनसाइट प्रोजेक्ट्स पर निर्भरता घटती है और भारत में ऑफशोरिंग को बढ़ावा मिलता है। अनुमान है कि 2030 तक GCC का साइज 150 अरब डॉलर से अधिक हो जाएगा। इस बदलाव के साथ, भारत सिर्फ सपोर्ट सर्विसेज देने वाला देश नहीं रहेगा। यह ग्लोबल डिजिटल इंजीनियरिंग और ऑपरेशंस हब बन सकता है।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
H-1B वीजा शुल्क की बढ़ोतरी का असर कंपनियों के साथ भारतीय कर्मचारियों और स्टार्टअप्स पर भी पड़ेगा। बड़े GCC मॉडल में अधिक टैलेंट हायर होगा और बेहतर वेतन मिलेगा। इससे छोटे स्टार्टअप्स को कर्मचारियों को रोकना मुश्किल हो जाएगा। स्टार्टअप्स को या तो हाई-वैल्यू सेवाओं पर फोकस करना होगा या कम लागत वाले ऑपरेशन के लिए टियर-2 शहरों की ओर रुख करना पड़ेगा। कुछ कंपनियां फिलीपींस और अन्य एशियाई देशों का विकल्प भी चुन सकती हैं।
इसके अलावा, अमेरिकी बाजार में आईटी निर्यात भारत के लिए विदेशी मुद्रा का एक बड़ा स्रोत है। 2024-25 में भारत का नेट IT एक्सपोर्ट 160 अरब डॉलर रहा और नेट रेमिटेंस लगभग 120 अरब डॉलर स्थिर रहा। अगर यह संकट लंबा चला, तो चालू खाता घाटा (CAD) पर दबाव बढ़ सकता है।
अमेरिकी राजनीति और संभावित खतरे
यह परिवर्तन केवल फीस तक सीमित नहीं है। अमेरिका में प्रस्तावित नया कानून HIRE Act (Halting International Relocation of Employment Act भी चर्चा में है। इस कानून के तहत, अमेरिकी कंपनियों को अगर वे विदेश में काम आउटसोर्स करती हैं, तो उन्हें 25 प्रतिशत टैक्स देना पड़ सकता है। यदि यह कानून पास होता है, तो यह भारतीय IT ऑफशोरिंग मॉडल के लिए और बड़ा झटका साबित हो सकता है।
निवेशकों और कंपनियों के लिए संकेत
एमके रिसर्च के अनुसार, फिलहाल IT सेक्टर के लिए जोखिम बढ़ गया है। नीति और जियो-पॉलिटिकल अनिश्चितता के कारण IT कंपनियों की वैल्यूएशन प्रभावित हो सकती है। बड़ी कंपनियां टिक सकती हैं, लेकिन मिडकैप और स्मॉलकैप IT कंपनियों पर असर और भी गंभीर होगा।
अवसर की कहानी
हालांकि यह संकट भारतीय IT सेक्टर के लिए चुनौतीपूर्ण है, इसके भीतर अवसर भी छिपा है। बड़े खिलाड़ियों और GCC मॉडल के माध्यम से भारत को वैश्विक इनोवेशन हब बनने का मौका मिल सकता है। ऑफशोरिंग और लोकल हायरिंग मॉडल को अपनाकर कंपनियां अपने संचालन को अधिक स्थिर बना सकती हैं। स्टार्टअप्स के लिए यह समय हाई-वैल्यू सेवाओं और नई तकनीकों में निवेश का है। साथ ही GCC मॉडल से भारत के कर्मचारियों के लिए नए अवसर खुलेंगे और ग्लोबल एक्सपोज़र बढ़ेगा।
भविष्य
आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय IT कंपनियां इस संकट को अवसर में बदल पाती हैं या नहीं। H-1B वीजा शुल्क में बढ़ोतरी ने पारंपरिक ताकत को चुनौती दी है, लेकिन सही रणनीति और नवाचार के माध्यम से इसे भारत के लिए वैश्विक शक्ति का साधन भी बनाया जा सकता है। एक ओर जहां छोटे और मझोले कारोबारों को कठिनाइयों का सामना करना होगा, वहीं बड़ी कंपनियां और GCC मॉडल भारतीय IT सेक्टर को सशक्त और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में अग्रसर होंगे।
H-1B वीजा फीस की बढ़ोतरी भारतीय IT उद्योग के लिए संघर्ष और अवसर दोनों लेकर आई है। छोटी कंपनियां चुनौती का सामना करेंगी, लेकिन बड़ी कंपनियां और GCC मॉडल भारत को एक आउटसोर्सिंग डेस्टिनेशन से ग्लोबल इनोवेशन हब की दिशा में ले जा सकते हैं। भारत की IT शक्ति अब केवल सस्ते आउटसोर्सिंग मॉडल तक सीमित नहीं रहेगी, यह वैश्विक डिजिटल इंजीनियरिंग, ऑपरेशंस और नवाचार का केंद्र बन सकती है।