आज का भारत बदल रहा है और यह बदलाव सिर्फ सड़कों या स्काईस्क्रेपर में नहीं, छोटे शहरों, गांवों और ज़मीन से जुड़ी कहानियों में दिख रहा है। अब न सफलता की पहचान सिर्फ बड़ी डिग्री या विदेशी नौकरी है, बल्कि चपरासी की डेस्क से निकला आइडिया भी फेविकोल जैसा इंडस्ट्री लीडर बन सकता है। यही नहीं एक गांव की महिलाएं डिजिटल राखी के जरिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में उतर रही हैं आज आगरा के फुटवियर की मेहनत भरी गलियों से लेकर अलीगढ़ के जंग लगे ताले तक, फिरोज़ाबाद की चूड़ियों से लेकर आगरा के धातु उद्योग तक, यहां सिर्फ व्यापार नहीं हो रहा बल्कि पहचान बन रही है। कामिनी सिंह जैसी वैज्ञानिक, जिन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर किसानों की जिंदगी में क्रांति ला दी, या फिर बकरी पालन, जो अब आत्मनिर्भरता का रास्ता बन रहा है। ये कहानियां साबित करती हैं कि आवश्यकता, नवाचार और आत्मबल मिलकर एक नया भारत गढ़ रहे हैं। आज जब लाहौरी जीरा जैसे देसी ब्रांड कोका-कोला को टक्कर दे रहे हैं और जब मेरठ का खेल उद्योग ग्लोबल मंच पर कदम रख रहा है, तो यह बदलाव सिर्फ आर्थिक नहीं, सांस्कृतिक और सामाजिक भी है।
उन लोगों को नमन है, जिन्होंने बिना फैक्ट्री के ब्रांड बनाए, बिना डिग्री के क्रांति लाई और बिना शोर किए एक नया भारत रच डाला। यह सफर अभी जारी है और इसकी असली ताकत है जमीन से जुड़ी सोच और उड़ान भरती उम्मीद ।
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