शहनवाज़ शम्सी। 2025 में जब भारत इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की ओर तेज़ी से अग्रसर है, तब इस परिवर्तन की रीढ़ बन रहे हैं – ईवी चार्जिंग स्टेशन। जहां एक ओर सरकार ‘2030 तक 30% ईवी लक्ष्य’ की ओर बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर देशभर में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र मिलकर चार्जिंग नेटवर्क को मजबूत करने में लगे हैं।
EV क्रांति के पीछे चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की भूमिका
ईवी चार्जिंग स्टेशनों का जाल जितना विस्तृत होगा, उतनी ही तेज़ी से लोग पेट्रोल-डीजल वाहनों से इलेक्ट्रिक विकल्पों की ओर शिफ्ट करेंगे। आज के दौर में सिर्फ महानगर ही नहीं, बल्कि टियर-2 और टियर-3 शहरों तक यह क्रांति पहुंच रही है। 2025 की शुरुआत तक भारत में 15 हजार से अधिक पब्लिक ईवी चार्जिंग स्टेशन स्थापित हो चुके हैं और अगले दो वर्षों में यह संख्या 1 लाख तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
सरकारी योजनाएं: नीति आयोग से PLI स्कीम तक
भारत सरकार ने FAME-II (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles) योजना, PLI (Production Linked Incentive) स्कीम और ‘राष्ट्रीय ईवी नीति’ के तहत चार्जिंग स्टेशनों को बढ़ावा देने के लिए कई सब्सिडी और प्रोत्साहन दिए हैं। राज्य सरकारें भी अपने-अपने स्तर पर नीति बना रही हैं, जैसे कि दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश ने शहरों और हाइवे नेटवर्क पर चार्जिंग स्टेशनों के लिए भूमि, टैक्स छूट और लाइसेंसिंग को आसान किया है।
निजी कंपनियों की बड़ी एंट्री
टाटा पावर, अडानी, रिलायंस, स्टैटिक, Fortum और ChargeZone जैसी कंपनियां देशभर में हाई-स्पीड और मल्टी-पॉइंट चार्जिंग हब बना रही हैं। पेट्रोल पंपों को भी हाइब्रिड मॉडल पर अपग्रेड किया जा रहा है – जहां एक ही जगह फ्यूल और चार्जिंग दोनों की सुविधा उपलब्ध हो। कुछ स्टार्टअप्स, जैसे BluSmart, Bolt, Kazam और Ionage, ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लो-कॉस्ट चार्जिंग मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिससे छोटे व्यापारी और डिलीवरी सर्विस भी ईवी को अपनाने लगे हैं।
हाइवे पर चार्जिंग: लंबी दूरी की चिंता खत्म
NHAI (राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) के साथ मिलकर कई प्राइवेट प्लेयर्स अब हाईवे पर हर 30–50 किलोमीटर पर चार्जिंग स्टेशन लगाने की दिशा में काम कर रहे हैं। दिल्ली-जयपुर, मुंबई-पुणे, और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर चार्जिंग सुविधा अब आम हो गई है।

टेक्नोलॉजी और इनोवेशन: स्वैपेबल बैटरी से सोलर चार्जिंग तक तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी भी इस क्षेत्र को सशक्त बना रही है।
- स्वैपेबल बैटरी मॉडल, जो Ola Electric और Sun Mobility जैसी कंपनियाँ ला रही हैं, चार्जिंग समय को पूरी तरह खत्म कर सकता है।
- सोलर आधारित चार्जिंग स्टेशन, जो ग्रीन एनर्जी के साथ ग्रिड लोड को भी कम करते हैं, आने वाले समय की सबसे बड़ी जरूरत बन सकते हैं।
- IoT-इनेबल्ड स्मार्ट चार्जर्स से यूज़र्स को लाइव डेटा, स्लॉट बुकिंग और डिजिटल पेमेंट की सुविधा भी मिल रही है।
यूजर एक्सपीरियंस और लागत: क्या यह सस्ता और सुगम है?
एक औसतन ईवी चार्जिंग की लागत ₹1.5–₹2.5 प्रति किलोवाट घंटा होती है, जो पेट्रोल/डीजल की तुलना में 60–70% सस्ती पड़ती है। चार्जिंग में लगने वाला समय फास्ट चार्जर पर 30–45 मिनट है, जबकि नॉर्मल चार्जिंग 4–6 घंटे में होती है। स्टेशनों पर वेटिंग टाइम, चार्जर की उपलब्धता और मोबाइल ऐप्स के जरिये ट्रैकिंग — ये सभी सुविधाएं यूज़र अनुभव को लगातार बेहतर बना रही हैं।
चुनौतियां अब भी बाकी हैं…
हालांकि तस्वीर पूरी तरह उजली नहीं है।
- चार्जिंग स्टेशन लगाने की भूमि की उपलब्धता,
- बिजली ग्रिड पर भार,
- और एकीकृत नीति की कमी — ये कुछ बड़े मुद्दे हैं जिनपर अब भी ध्यान देने की ज़रूरत है।
हर गली, हर शहर को चाहिए चार्जिंग पॉइंट
ईवी क्रांति केवल वाहन बेचने से नहीं आएगी, बल्कि उसे बनाएगा चार्जिंग का मजबूत ढांचा। यदि हर 2 किलोमीटर पर दूध और सब्जी मिल सकती है, तो आने वाले समय में हर मोहल्ले में चार्जिंग पॉइंट भी सामान्य बात होगी और यही भविष्य का भारत होगा – ग्रीन, क्लीन और इलेक्ट्रिक।