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एग्रीकल्चर

थोक महंगाई जून में निगेटिव: सब्ज़ी, प्याज़, आलू के दाम गिरे, किसानों के लिए चेतावनी का संकेत!

Last updated: 14/07/2025 3:55 PM
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Industrial Empire
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भारत की थोक महंगाई दर (WPI) जून 2025 में गिरकर -0.13% पर आ गई है। यह बीते 20 महीनों का सबसे निचला स्तर है। सीधे शब्दों में कहें, तो जून महीने में थोक स्तर पर चीज़ों की कीमतें घट गईं। खाने-पीने की चीज़ों और फ्यूल की कीमतों में गिरावट ने इसमें अहम भूमिका निभाई। इस गिरावट का सबसे बड़ा असर खेती-किसानी से जुड़े उत्पादों पर पड़ा है, जो अब चिंता का कारण बनता जा रहा है।

प्याज़, सब्ज़ियां और आलू के दाम गिरे
कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि जून में सब्ज़ियों की महंगाई दर -22.65% रही, जबकि मई में यह -21.62% थी। यानी, सब्ज़ियों की कीमतों में और भी गिरावट दर्ज की गई। सबसे ज्यादा गिरावट प्याज़ में आई – मई के -14.41% से घटकर जून में -33.49% हो गई। आलू की महंगाई दर भी और नीचे आई है – मई में यह -29.42% थी, जो अब -32.67% हो गई। किसानों के लिए इसका मतलब है कि जो फसलें वे लागत पर तैयार करते हैं, उनकी बाज़ार में कीमतें लागत से नीचे जा चुकी हैं। कई जगहों पर किसानों को प्याज़ और आलू का सही दाम नहीं मिल रहा, जिससे घाटा उठाना पड़ रहा है।

दालों की भी कीमत गिरी, अनाज में मामूली बढ़त
एक और चिंता की बात ये है कि दालों की कीमतों में भी गिरावट आई है। मई में जहां दालों की महंगाई दर 10.41 फीसदी थी, वो अब जून में गिरकर -22.65% हो गई है। यानी किसान जो दालें बेचते हैं, उनके दाम भी काफी नीचे आ गए हैं।हालांकि, अनाज की महंगाई दर थोड़ी बढ़ी है – मई के 2.56% से बढ़कर जून में यह 3.75% हो गई है। इससे गेहूं-धान उगाने वाले किसानों को कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन कुल मिलाकर कृषि उत्पादों के दाम घट रहे हैं।

फ्यूल और बिजली भी सस्ती, पर किसानों को कोई राहत नहीं
थोक महंगाई में फ्यूल और पावर का बड़ा रोल होता है। जून में इसकी महंगाई दर -2.65% रही, जबकि मई में यह 22.27% थी। यानी डीज़ल और बिजली के रेट थोक स्तर पर घटे हैं।

क्या ये राहत किसानों तक पहुंची है?
हकीकत यह है कि किसान अभी भी डीज़ल, ट्रैक्टर और बिजली के लिए उच्च दरों पर खर्च कर रहे हैं। थोक महंगाई का असर खुदरा स्तर तक पहुंचने में समय लगता है और तब तक खरीफ सीज़न का खर्चा उनके सिर चढ़ चुका होगा।

मैन्युफैक्चरिंग और कच्चे माल – खेती से जुड़े सप्लाई चैन पर असर
WPI में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का वेटेज सबसे ज़्यादा है (60 प्रतिशत से अधिक)। जून में यहां महंगाई 1.97% प्रतिशत रही। इससे खाद, बीज, कीटनाशक, ट्रैक्टर के पार्ट्स और कृषि यंत्रों की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं। यानी किसानों को इस तरफ से भी कोई बड़ी राहत नहीं मिली है।

खुदरा महंगाई घटी: उपभोक्ताओं के लिए राहत
मई 2025 में भारत की खुदरा महंगाई (CPI) भी गिरकर 2.82% पर आ गई थी – यह बीते 6 सालों का सबसे निचला स्तर है। इसका सीधा लाभ ग्राहकों को मिलता है, क्योंकि उन्हें सामान सस्ते मिलते हैं। लेकिन किसानों के लिए यह डबल झटका है। उत्पादन की लागत जस की तस है और उत्पाद के दाम गिरते जा रहे हैं। इस असंतुलन का असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी साफ दिखने लगा है।

RBI ने FY26 के लिए क्या कहा?
RBI ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए महंगाई दर का अनुमान घटाकर 3.7 फीसदी कर दिया है। तिमाही आधार पर अनुमान इस प्रकार है:

Q1 FY26: 2.9%
Q2 FY26: 3.4%
Q3 FY26: 3.9%
Q4 FY26: 4.4%

इसका मतलब है कि आगे भी कीमतों में तेजी नहीं आने वाली। इससे किसान वर्ग के लिए कमाई बढ़ने की संभावना और भी कम हो गई है।

गिरती महंगाई: किसानों के लिए खतरे की घंटी?
जब उपभोक्ता राहत महसूस करते हैं कि चीज़ें सस्ती हो रही हैं, तब किसान इस बात से परेशान होते हैं कि उनके उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। WPI और CPI दोनों के घटने से साफ है कि भारत में मांग घट रही है और किसानों की मेहनत का मोल भी। सरकार को चाहिए कि वह गिरते थोक भाव के इस दौर में कृषि क्षेत्र के लिए सपोर्ट प्राइस (MSP), स्टोरेज, प्रोसेसिंग और एक्सपोर्ट चैन पर विशेष ध्यान दे ताकि किसानों की कमर न टूटे।

TAGGED:agriculturalIndustrial Empireinflation rateMinistry of Commerce and IndustryRBIWPI
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