भारत में लागू होने वाले CAFE-3 (कॉरपोरेट एवरेज फ्यूल एफिशिएंसी) उत्सर्जन मानकों को लेकर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में चल रहा विवाद अब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंच गया है। देश की प्रमुख ऑटो कंपनियों JSW MG मोटर और टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल्स (TMPV) ने इस मुद्दे पर PMO को अलग-अलग पत्र लिखकर अपनी चिंताएं जाहिर की हैं।
दोनों कंपनियों का कहना है कि पेट्रोल से चलने वाली छोटी कारों को वजन के आधार पर अतिरिक्त राहत देने का प्रस्ताव न केवल इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) मिशन को कमजोर करेगा, बल्कि इससे सड़क सुरक्षा और उद्योग में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
क्या है CAFE-3 और क्यों है यह अहम?
CAFE यानी कॉरपोरेट एवरेज फ्यूल एफिशिएंसी फ्रेमवर्क के तहत वाहन निर्माताओं के पूरे पोर्टफोलियो के लिए कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की सीमा (ग्राम प्रति किलोमीटर) तय की जाती है। इन मानकों का उद्देश्य कंपनियों को ज्यादा ईंधन-कुशल और पर्यावरण के अनुकूल वाहन बनाने के लिए प्रेरित करना है। अगर कोई कंपनी तय मानकों का पालन नहीं करती है, तो ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) उस पर जुर्माना लगा सकता है। BEE, ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है।
वजन आधारित छूट से क्यों नाराज हैं कंपनियां?
JSW MG और टाटा मोटर्स का कहना है कि वजन के आधार पर पेट्रोल कारों को राहत देना मौजूदा नियमों से बड़ा बदलाव है। अभी तक छोटी कारों की पहचान सिर्फ दो मानकों पर होती रही है – लंबाई 4 मीटर से कम और पेट्रोल इंजन 1,200 cc से कम। अब अगर वजन को नया आधार बनाया गया, तो इससे सिर्फ एक खास कार निर्माता को फायदा मिलेगा, जबकि बाकी कंपनियों ने पिछले करीब 20 साल से मौजूदा परिभाषा के हिसाब से निवेश और प्रोडक्ट प्लानिंग की है।
CAFE-3 ड्राफ्ट में क्या बदलाव प्रस्तावित हैं?
BEE ने जून 2024 में FY28–FY32 के लिए CAFE-3 मानकों का पहला ड्राफ्ट जारी किया था। इसके बाद ऑटो इंडस्ट्री बॉडी SIAM ने इसमें बदलावों की मांग की। सितंबर 2025 में जारी संशोधित ड्राफ्ट में पहली बार 909 किलोग्राम से कम वजन वाली पेट्रोल कारों को 3 ग्राम/किमी की अतिरिक्त छूट देने का प्रस्ताव शामिल किया गया। इसी प्रस्ताव ने पूरे उद्योग में मतभेद पैदा कर दिए।
EV मिशन पर पड़ सकता है असर
कंपनियों का कहना है कि CAFE मानकों का असली मकसद EV और हाइब्रिड जैसी क्लीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना है। अगर पेट्रोल कारों को विशेष राहत दी जाती है, तो इससे EV में निवेश करने का प्रोत्साहन कमजोर पड़ सकता है। भारत सरकार पहले ही 2030 तक 30% EV अपनाने का लक्ष्य रख चुकी है। फिलहाल देश में कार सेगमेंट में EV की हिस्सेदारी करीब 5% तक पहुंच चुकी है। नीति में स्थिरता रही, तो भारत भविष्य में शून्य-उत्सर्जन वाहनों का बड़ा हब बन सकता है।
‘लेवल प्लेइंग फील्ड’ बिगड़ने का आरोप
टाटा मोटर्स ने अपने पत्र में साफ कहा है कि प्रस्तावित वजन सीमा निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचा सकती है। जिस वजन श्रेणी की बात हो रही है, उसमें एक ही OEM की करीब 95% बाजार हिस्सेदारी है। इससे उन कंपनियों को नुकसान होगा, जिन्होंने वर्षों से मौजूदा टैक्स और रेगुलेटरी ढांचे के तहत निवेश किया है। GST नियमों के अनुसार, 4 मीटर से छोटी और 1,200 cc तक की पेट्रोल कारों पर 18% टैक्स लगता है, जबकि बड़ी कारों पर 40% GST लागू होता है।
सुरक्षा मानकों को लेकर भी चिंता
JSW MG और TMPV ने चेतावनी दी है कि वजन आधारित छूट से कंपनियां सुरक्षा फीचर्स की कीमत पर वजन घटाने की कोशिश कर सकती हैं। इससे हाल के वर्षों में वाहन सुरक्षा में हुई प्रगति को झटका लग सकता है। टाटा मोटर्स ने यह भी बताया कि 909 किलोग्राम या उससे कम वजन की कोई भी कार अभी BNCAP सेफ्टी रेटिंग हासिल नहीं कर पाई है। मजबूत बॉडी, एयरबैग, साइड-इंपैक्ट बीम और क्रंपल जोन जैसी चीजें वाहन का वजन बढ़ाती हैं, लेकिन यात्रियों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाती हैं।
EV सेक्टर में भारी निवेश का हवाला
JSW MG ने कहा कि ऑटो इंडस्ट्री ने अब तक ₹1 लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश EV वैल्यू चेन में किया है। इसमें बैटरी मैन्युफैक्चरिंग, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और एडवांस टेक्नोलॉजी शामिल है। कंपनी के मुताबिक अब इन निवेशों के नतीजे दिखने लगे हैं और नीति में अचानक बदलाव से इस पूरी दिशा को नुकसान हो सकता है।
यूरोप से अलग है भारत की स्थिति
जहां भारत में पेट्रोल कारों को राहत देने पर बहस चल रही है, वहीं यूरोप ने छोटी इलेक्ट्रिक कारों को बढ़ावा देने का रास्ता चुना है। EU में 4.2 मीटर से कम लंबाई वाली EVs को “सुपर क्रेडिट” दिया जाएगा, जहां एक EV बिक्री को 1.3 गुना गिना जाएगा। यह नीति 2034 तक लागू रहेगी और इसका मकसद कॉम्पैक्ट EV को बढ़ावा देना है।
PMO से क्या मांग कर रही हैं कंपनियां?
JSW MG और टाटा मोटर्स ने PMO से आग्रह किया है कि वजन आधारित CAFE राहत को मंजूरी न दी जाए। उनका कहना है कि नीति को इस तरह डिजाइन किया जाना चाहिए, जिससे EV अपनाने, सड़क सुरक्षा और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा – तीनों को समान रूप से बढ़ावा मिले। अब सबकी नजर इस बात पर है कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या फैसला लेती है, क्योंकि इसका असर भारत की ऑटो इंडस्ट्री के भविष्य पर सीधा पड़ेगा।