आर्थिक सर्वेक्षण 2025 जारी हो गया है और इसमें रोजगार के मोर्चे पर सरकार की स्थिति को लेकर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट है कि 10 साल की स्थिर सरकार के बाद भी रोज़गार सृजन पर ठोस उपलब्धियां सामने नहीं हैं। इसके बजाय, तीन प्रमुख कारण या “बहाने” बताए गए हैं –
- निजी क्षेत्र को दोष देना – सर्वे में कहा गया कि मुनाफे में बढ़ोतरी के बावजूद कॉरपोरेट नौकरियां नहीं दे रहे।
- राज्यों पर जिम्मेदारी डालना – यह दावा किया गया कि कई रोजगार-संबंधी मुद्दे राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में हैं।
- आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का प्रभाव – तकनीकी बदलाव को रोजगार घटने का कारण बताया गया, लेकिन ठोस डेटा पेश नहीं किया गया।
स्किल इंडिया पर सवाल
2015 में लॉन्च हुए स्किल इंडिया मिशन के तहत 32 करोड़ युवाओं को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया है कि 50% युवा नौकरी के योग्य नहीं हैं। सवाल उठता है कि यदि स्किल डेवलपमेंट असफल रहा, तो इस योजना का उद्देश्य और परिणाम क्या रहे?
डेटा का अभाव
सर्वेक्षण मानता है कि भारत में रोजगार का सटीक और समय पर डेटा उपलब्ध नहीं है। 2011 की जनगणना के बाद कोई नई जनगणना नहीं हुई, जिससे असंगठित क्षेत्र (जहां 94% आबादी कार्यरत है) के हालात का सही आकलन संभव नहीं है।
कॉरपोरेट मुनाफ़ा बनाम निवेश
वित्त वर्ष 2020 से 2023 के बीच भारतीय कॉरपोरेट का कर-पूर्व मुनाफ़ा चार गुना बढ़ा, फिर भी निजी निवेश और नौकरियां नहीं बढ़ीं। 2019 में कॉरपोरेट टैक्स घटाने के बावजूद यह उम्मीद पूरी नहीं हुई। नतीजतन, निजी आयकर का योगदान कॉरपोरेट टैक्स से अधिक हो गया है—यानी आम जनता अर्थव्यवस्था का बोझ उठा रही है।
असंगठित क्षेत्र पर झटके
नोटबंदी, जीएसटी, NBFC संकट और कोविड-19 ने असंगठित क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया। लाखों नौकरियां चली गईं और कई उद्यम बंद हो गए। गिग इकॉनमी में अस्थायी और कम वेतन वाली नौकरियां बढ़ी हैं, जबकि स्थायी रोजगार घटा है।
युवाओं के लिए चुनौतियां
प्रमुख संस्थानों जैसे IIT और IIM के स्नातकों तक को उचित वेतन वाली नौकरियां नहीं मिल रही हैं। IT सेक्टर में शुरुआती वेतन वर्षों से स्थिर है, और मैन्युफैक्चरिंग में आधे से अधिक कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट पर हैं।
नतीजा
आर्थिक सर्वेक्षण ने रोजगार की खराब स्थिति को स्वीकार किया है, लेकिन ठोस समाधान पेश नहीं किया। डेटा की कमी, निजी क्षेत्र की उदासीनता और नीति-निर्माण में राज्यों-केंद्र के बीच तालमेल की कमी, बेरोज़गारी संकट को और गंभीर बना रही है।