शहनवाज शम्सी। “जिसे लोग छोटा समझते हैं, वही चीज़ अगर दिल से की जाए तो एक दिन दुनिया उसे सलाम करती है।” कुछ ऐसा ही कर दिखाया पश्चिम बंगाल के नारायण माजूमदार ने – जिन्होंने सिर्फ़ एक साइकिल और दूध से भरे कुछ कनस्तरों से अपने सफर की शुरुआत की थी। आज उनका नाम भारत के सफल डेयरी उद्यमियों में लिया जाता है।
माँ के दूध जैसी शुरुआत
नारायण का बचपन एक साधारण किसान परिवार में बीता। घर में गायें थीं, लेकिन बाजार तक दूध पहुँचाने का कोई साधन नहीं। पढ़ाई के साथ-साथ नारायण ने यह ज़िम्मेदारी उठाई और साइकिल पर दूध पहुँचाने लगे। लोगों को भरोसा हुआ – क्योंकि जो दूध वे पहुंचाते थे, उसमें माँ के दूध जैसी शुद्धता और सच्चाई थी।
संघर्ष की सवारी
साल 1997 में नारायण ने सिर्फ़ एक साइकिल के सहारे गांव-गांव जाकर दूध इकट्ठा करना शुरू किया। सुबह चार बजे उठते, दूध के डिब्बे संभालते और 20-30 किलोमीटर का फेरा लगाते। कई बार बारिश, कीचड़ और थकान से जूझना पड़ता, लेकिन उनके अंदर एक सपना था – “दूध को व्यवसाय नहीं, सेवा बनाना।”
जब दूध बना कारोबार
धीरे-धीरे उन्होंने दूध की शुद्धता और समय पर डिलीवरी के कारण बाजार में भरोसा कमाया। 2004 में उन्होंने एक छोटी सी डेयरी यूनिट डाली और उसका नाम रखा – Red Cow Dairy Pvt. Ltd.
आज की स्थिति –
- 3 बड़े दूध प्रसंस्करण प्लांट चला रही है
- 22 कलेक्शन और कोल्ड स्टोरेज सेंटर हैं
- हज़ारों लीटर दूध हर दिन ग्रामीण इलाकों से एकत्रित करती है
- दूध, दही, छाछ, पनीर और घी जैसे उत्पाद पूरे पूर्वी भारत में भेजती है
गाँव का भरोसा बना ताकत
Red Cow Dairy की सबसे बड़ी खासियत है – किसानों के साथ पारदर्शी रिश्ता। कंपनी किसानों को बाज़ार के भाव से भी बेहतर दाम देती है और उन्हें प्रशिक्षित भी करती है कि गायों को कैसे बेहतर रखा जाए, जिससे दूध की गुणवत्ता बनी रहे।
एक विचार जो मिसाल बना
नारायण कहते हैं – “यह सिर्फ दूध नहीं है, यह गाँव की मेहनत, गायों का आशीर्वाद और हमारी संस्कृति का प्रतीक है।” उनका मानना है कि “माँ का दूध” सिर्फ़ शरीर नहीं, समाज को भी पोषण देता है और अगर आप अपने प्रोडक्ट में वही भावना रखें, तो वह भरोसे का पर्याय बन जाता है।
आज का साम्राज्य
आज Red Cow Dairy का टर्नओवर करोड़ों में है। पर नारायण की सबसे बड़ी पूँजी वो किसान हैं जो उनके साथ जुड़े हैं और वो ग्राहक हैं जो अब दूध को सिर्फ़ एक प्रोडक्ट नहीं, एक विश्वास मानते हैं।
निष्कर्ष
एक साइकिल, एक मिशन और एक माँ जैसी भावना से शुरू हुई यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादे सच्चे हों, तो “माँ का दूध” भी कमाई का ज़रिया बन सकता है – एक ऐसा ज़रिया जो समाज को भी आगे बढ़ाए और उद्योग को भी।
यह कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं, एक रणनीति भी है – कि ग्रामीण भारत से निकली छोटी पहलें भी देश की इंडस्ट्री का चेहरा बदल सकती हैं। अगर आप भी दूध, कृषि या छोटे स्केल पर बिज़नेस शुरू करना चाहते हैं, तो इस कहानी को बुकमार्क करें और याद रखें, “शुरुआत छोटी हो सकती है, पर सपना बड़ा रखो।”