अमेरिका में काम करने का सपना देखने वालों के लिए बड़ी खबर आई है। अमेरिकी राष्ट्रपति donald trump ने एच-1बी वीज़ा को लेकर एक ऐसा फैसला लिया है, जिससे सबसे ज़्यादा असर भारतीयों पर पड़ेगा। ट्रंप ने आदेश पर दस्तख़त करते हुए एच-1बी वीज़ा की आवेदन फ़ीस को सालाना एक लाख डॉलर यानी लगभग 88 लाख रुपये कर दिया है। अभी तक इसकी प्रशासनिक फ़ीस केवल 1,500 डॉलर थी।
इतना ही नहीं, ट्रंप ने गोल्ड कार्ड वीज़ा प्रोग्राम को भी हरी झंडी दे दी है। इसके तहत किसी व्यक्ति को अमेरिका में रहने और काम करने के लिए 10 लाख डॉलर (लगभग 9 करोड़ रुपये) और कंपनियों को 20 लाख डॉलर (18 करोड़ रुपये) चुकाने होंगे। माना जा रहा है कि यह कदम ट्रंप की सख्त आप्रवासन नीति का हिस्सा है, जिसका सीधा असर भारतीय प्रोफेशनल्स और निवेशकों पर पड़ेगा।
H-1बी वीज़ा क्या है और क्यों ज़रूरी है?
H-1बी वीज़ा की शुरुआत साल 1990 में हुई थी। इसका मक़सद था ऐसे कुशल कर्मचारियों को अमेरिका लाना, जो वहां की कंपनियों के लिए ज़रूरी हों और जिनके विकल्प स्थानीय स्तर पर न मिलते हों। इस वीज़ा की सबसे ज़्यादा मांग भारतीय आईटी और टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स में रही है। ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि अब तक दिए गए H-1बी वीज़ा में से 72 फीसदी भारतीय नागरिकों को मिले हैं। चीन दूसरे नंबर पर है, जिसे लगभग 12 फीसदी वीज़ा जारी किए गए। यही वजह है कि ट्रंप सरकार का यह फैसला भारतीय आईटी सेक्टर और नौकरी तलाशने वालों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
Trump का तर्क: ‘अमेरिकी नौकरियां बचानी हैं’
ट्रंप लंबे समय से यह कहते आ रहे हैं कि गैर-अमेरिकी कर्मचारी अमेरिकी लोगों की नौकरियां छीन रहे हैं। राष्ट्रपति का दावा है कि कंपनियां कम वेतन वाले विदेशी कर्मचारियों को लाकर स्थानीय लोगों को काम पर रखने से बचती हैं। व्हाइट हाउस के स्टाफ़ सेक्रेट्री विल शार्फ़ ने भी कहा, “एच-1बी वीज़ा सिस्टम का सबसे ज़्यादा दुरुपयोग हो रहा था। यह वीज़ा उन बेहद कुशल कर्मचारियों के लिए है, जिनका विकल्प अमेरिका में मौजूद नहीं है। नई फीस से सिर्फ वही कंपनियां इसे स्पॉन्सर करेंगी, जिन्हें वास्तव में विशेषज्ञ कर्मचारियों की ज़रूरत होगी।”
भारतीय आईटी सेक्टर पर सीधा असर
भारत दुनिया भर में आईटी और टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स का बड़ा स्रोत है। अमेरिकी कंपनियां जैसे गूगल, अमेज़न, माइक्रोसॉफ़्ट और मेटा हर साल हज़ारों भारतीय इंजीनियरों और एक्सपर्ट्स को काम पर रखती हैं। साल 2025 की पहली छमाही में ही अमेज़न और AWS को 12 हजार से अधिक एच-1बी वीज़ा मंज़ूरी मिली। माइक्रोसॉफ़्ट और मेटा को भी 5 हजार से ज्यादा वीज़ा मिले। ऐसे में फीस बढ़ने से इन कंपनियों के खर्चे कई गुना बढ़ जाएंगे। इसका सीधा असर भारतीय कर्मचारियों की भर्ती पर पड़ेगा।
टेक इंडस्ट्री की चिंताएं
ट्रंप ने इस फैसले पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि उन्हें लगता है अमेरिकी टेक कंपनियां खुश होंगी, लेकिन हकीकत इसके उलट दिख रही है। ई-मार्केट विश्लेषक जेरेमी गोल्डमैन ने रॉयटर्स से कहा, “कुछ समय के लिए तो अमेरिका को अच्छी कमाई होगी। लेकिन लंबे समय में इससे इनोवेशन पर उसकी बढ़त घट जाएगी। यह संरक्षणवाद को बढ़ावा देगा।” वेंचर कैपिटल फर्म मेनलो वेंचर्स के पार्टनर डीडीडेस ने भी चिंता जताते हुए कहा कि अगर अमेरिका दुनिया की बेहतरीन प्रतिभाओं को आकर्षित करना बंद कर देता है तो उसकी इनोवेशन और आर्थिक ताक़त कमजोर पड़ जाएगी।
गोल्ड कार्ड वीज़ा: अमीरों के लिए नया दरवाज़ा
एच-1बी वीज़ा के साथ-साथ ट्रंप ने गोल्ड कार्ड वीज़ा प्रोग्राम भी लागू कर दिया है। इस स्कीम के तहत मोटी रकम देकर कोई भी व्यक्ति अमेरिका में रह सकता है या वहां कंपनी खोल सकता है।
व्यक्ति के लिए फीस: 10 लाख डॉलर (लगभग 9 करोड़ रुपये)
कंपनियों के लिए फीस: 20 लाख डॉलर (लगभग 18 करोड़ रुपये)
ट्रंप का कहना है कि इससे अमेरिका अपने राष्ट्रीय कर्ज़ को जल्दी चुका पाएगा। यह गोल्ड कार्ड वीज़ा ग्रीन कार्ड जैसा होगा और धारक को स्थायी नागरिकों जैसी सुविधाएं मिलेंगी।
भारतीय प्रवासियों पर असर
करीब 10 लाख भारतीय ग्रीन कार्ड का इंतज़ार कर रहे हैं। अमेरिका में लगभग 50 लाख भारतीय रहते हैं। नए गोल्ड कार्ड वीज़ा प्रोग्राम से वहां बसने की चाह रखने वाले अमीर भारतीयों के लिए एक नया रास्ता खुल जाएगा, लेकिन इसकी भारी लागत हर किसी के बस की बात नहीं है। इमिग्रेशन मामलों के जानकार मनीष श्रीवास्तव का कहना है, “भारत में व्यवसाय आसान नहीं है। ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स में भारत अभी भी काफ़ी पीछे है। ऐसे में अमेरिका की नागरिकता चाहने वाले बड़े कारोबारियों के लिए यह बड़ा अवसर है। इससे करोड़पतियों का पलायन और भी बढ़ सकता है।”
क्या खोएगा और क्या पाएगा अमेरिका?
अमेरिका को इस फैसले से शॉर्ट-टर्म में तो भारी भरकम फीस के रूप में कमाई होगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे उसका ग्लोबल टैलेंट पूल कमजोर पड़ जाएगा? ऐसा होने पर अमेरिका दुनिया की बेहतरीन प्रतिभा, इनोवेशन पर बढ़त, आर्थिक विकास की रफ्तार को खो सकता है। साथ ही इससे अमेरिका को सरकारी खज़ाने में बड़ी रकम, स्थानीय लोगों की नौकरियों पर नियंत्रण मिलेगा। वहीं कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह नीति अमेरिका के लिए उल्टा असर भी डाल सकती है। कंपनियां अब कम खर्च वाले देशों में अपने सेंटर खोलने पर मजबूर होंगी और अमेरिका की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री की ग्लोबल लीडरशिप खतरे में पड़ सकती है।
भारतीयों के लिए कठिन राह
ट्रंप प्रशासन का यह फैसला भारत के उन लाखों युवाओं और प्रोफेशनल्स के लिए निराशाजनक है, जो एच-1बी वीज़ा के सहारे अमेरिका जाकर करियर बनाने का सपना देखते हैं। अब कंपनियों के लिए इतने महंगे वीज़ा स्पॉन्सर करना संभव नहीं होगा, जिससे भारतीयों की भर्ती में कमी आएगी। दूसरी तरफ, गोल्ड कार्ड वीज़ा ने अमीर भारतीयों के लिए एक नया रास्ता खोला है, लेकिन यह रास्ता सिर्फ उन्हीं के लिए है जो करोड़ों रुपये खर्च कर सकते हैं।
ट्रंप का यह कदम साफ़ दिखाता है कि उनकी आप्रवासन नीति का मक़सद अमेरिकी नौकरियों को सुरक्षित करना और विदेशी प्रतिभाओं पर निर्भरता घटाना है। लेकिन इसके दूरगामी परिणाम अमेरिका और भारत दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। भारत के लिए यह एक चेतावनी भी है कि देश के टैलेंट को रोकने और अवसर देने के लिए घरेलू स्तर पर बेहतर माहौल और अवसर बनाने होंगे। वरना, युवा और अमीर दोनों ही बेहतर भविष्य के लिए विदेशों की ओर रुख करते रहेंगे।