जब श्रद्धा से चलता है कारोबार
हर साल सावन में जब शिवभक्त कांवड़ लेकर गंगा घाटों से जल भरने निकलते हैं, तो उत्तर भारत की सड़कों पर न केवल “हर हर महादेव” की गूंज होती है, बल्कि बाजारों में भी रौनक लौट आती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश – विशेष रूप से मेरठ, मुज़फ्फरनगर, बागपत, सहारनपुर और शामली – कांवड़ यात्रा के दौरान एक ₹2500 करोड़ से अधिक की मौसमी अर्थव्यवस्था का गवाह बनते हैं।
अनुमानित कारोबार: आंकड़ों में यात्रा
सेक्टर | अनुमानित कारोबार |
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दूध, बर्फ, फल, खाद्य सामग्री | ₹800 करोड़ |
DJ, टेंट, डेकोरेशन, लाइटिंग | ₹600 करोड़ |
पूजा सामग्री, झंडे, टी-शर्ट | ₹350 करोड़ |
ई-रिक्शा, चार्जिंग पॉइंट्स | ₹150 करोड़ |
छोटे दुकानदार, ढाबे, होटल | ₹400 करोड़ |
प्रशासनिक व लॉजिस्टिक खर्च | ₹200 करोड़ |
कुल अनुमानित टर्नओवर | ₹2500+ करोड़ |
सबसे बड़ा सेक्टर: दूध और भंडारे की अर्थव्यवस्था
कांवड़ यात्रा के दौरान हर दिन लाखों लीटर दूध की खपत होती है – चाहे वो भगवान शिव को अर्पित करने के लिए हो या सेवा-भंडारों में बनने वाली चाय के लिए। बर्फ, केले, खजूर, रूह अफज़ा, नींबू पानी जैसी वस्तुओं की मांग कई गुना बढ़ जाती है। “सावन के महीने में हम 15 दिनों में जितना बेचते हैं, उतना साल भर नहीं बिकता,” – मेरठ के एक फल विक्रेता की बात।
DJ, टेंट और ट्रांसपोर्ट सेक्टर की धूम
कांवड़ यात्रा के स्वरूप में अब पारंपरिकता के साथ आधुनिकता का संगम दिखता है। DJ, लाइट शो, साउंड सिस्टम, टेंट हाउस, जनरेटर और साज-सज्जा में भारी खर्च होता है। एक DJ सेट की बुकिंग ₹10,000–₹25,000 प्रतिदिन तक होती है। “हमारे 60 DJ सेट सावन भर के लिए बुक रहते हैं। कमाई 6 गुना तक हो जाती है,” – एक स्थानीय DJ प्रोवाइडर, मुज़फ्फरनगर।
डिजिटल और सेवा सेक्टर का उभार
• मोबाइल चार्जिंग पॉइंट्स, फ्री वाई-फाई, ई-रिक्शा और QR कोड पेमेंट जैसे नवाचार इस बार ज़मीन पर देखने को मिले।
• सिर्फ मुज़फ्फरनगर जिले में लगभग 800 ई-रिक्शा श्रद्धालुओं को सेवा देते हैं।
• मंदिरों और शिविरों में डिजिटल पेमेंट स्वीकारने वाले भंडारे और स्टॉल्स की संख्या बढ़ी है।
रोज़गार और लोकल इकॉनमी
कांवड़ यात्रा के दौरान छोटे दुकानदारों, ढाबा संचालकों, मिठाई विक्रेताओं, फलवालों और सड़क किनारे स्टॉल्स की आमदनी सामान्य से 3-5 गुना तक बढ़ जाती है। सिर्फ मेरठ में अनुमानतः 40 हजार से अधिक अस्थायी रोजगार उत्पन्न होते हैं।
प्रशासन की भूमिका और खर्च
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस यात्रा को व्यवस्थित बनाने के लिए भारी संसाधन लगाए जाते हैं:
• कांवड़ पथ की बैरिकेडिंग और सजावट
• मेडिकल कैंप, मोबाइल एंबुलेंस
• CCTV कैमरे, ड्रोन निगरानी
• सुरक्षा कर्मियों की तैनाती
• साफ-सफाई और जलापूर्ति की व्यवस्था
यह सब मिलाकर ₹200 करोड़ से अधिक का प्रशासनिक खर्च अनुमानित है।
आस्था और अर्थव्यवस्था का संगम
कांवड़ यात्रा अब सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं रही – यह एक मल्टी सेक्टोरल बिज़नेस इकोसिस्टम में बदल चुकी है। इस यात्रा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को न केवल सामाजिक और धार्मिक रूप से जोड़ने का काम किया, बल्कि मौसमी व्यापार को एक नई ऊंचाई भी दी।